दीक्षारंभ में बताया गया गुरु और त्याग का महत्त्व

 

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय में नवप्रवेशी छात्रों के लिए दस दिवसीय दीक्षारंभ कार्यक्रम प्रारंभ

देवप्रयाग/ टिहरीकेंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग में नवप्रवेशी छात्रों हेतु दस दिवसीय दीक्षारंभ कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। इस कार्यक्रम के माध्यम से विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय की अध्ययन संस्कृति, अनुशासन और भारतीय जीवन मूल्यों से परिचित कराया जा रहा है।

कार्यक्रम का उद्घाटन कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने किया। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि विद्या का पहला लक्ष्य विनम्रता है। उन्होंने कहा कि “पुस्तक से अधिक महत्त्वपूर्ण गुरु का मार्गदर्शन होता है। विद्या केवल आजीविका के लिए नहीं, बल्कि आत्मविकास और जीवन की पूर्णता के लिए होती है।”
प्रो. वरखेड़ी ने विद्यार्थियों को संयमित जीवन अपनाने, दिनचर्या निर्धारित करने और अनुशासित रहते हुए गुरु से मार्गदर्शन प्राप्त करने की सलाह दी। उन्होंने कहा, “गुरु के बिना ज्ञान अधूरा है। भारत की परंपरा में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। बिना त्याग और तप के विद्या प्राप्त नहीं होती।”

शैक्षणिक अधिष्ठाता प्रो. मदमोहन झा ने कहा कि इस दस दिवसीय कार्यक्रम के दौरान विद्यार्थियों को विश्वविद्यालय की संरचना, कार्यपद्धति और संस्कृत व्यवहार भाषा में दक्षता पर विशेष प्रशिक्षण दिया जाएगा। सभी विषयों के आचार्य अपने-अपने विषयों का परिचय देंगे।

बहुविषयक अधिष्ठाता एवं लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा ने छात्रों को लक्ष्य के प्रति समर्पित रहने का संदेश देते हुए कहा कि आत्मनिष्ठा और निरंतर अभ्यास ही सफलता की कुंजी है।


 

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