कोटेश्वर महादेव : टिहरी गढ़वाल का प्राचीन सिद्धपीठ”

  • देवप्रयाग / टिहरी गढ़वाल (गिरिश चन्द्र भट्ट)

“जहाँ शिव स्वयं परिवार सहित विराजमान हैं – कोटेश्वर महादेव मंदिर”
“मनोकामनाएँ पूर्ण करने वाला उत्तरवाहिनी गंगा तट का पवित्र धाम”
“कोटेश्वर महादेव : साधकों के लिए कैलाश समान पवित्र धाम”

उत्तराखंड के टिहरी जनपद, नरेंद्रनगर ब्लॉक, पट्टी क्वीली में स्थित श्री कोटेश्वर महादेव मंदिर भगवान शंकर का अत्यंत प्राचीन और दिव्य धाम है। यह स्थान स्कंद महापुराण के केदारखंड (अध्याय 144) में वर्णित सिद्धपीठों में प्रमुख है।

मान्यता है कि जब भस्मासुर ने भगवान शिव को अपने वरदान से संकट में डाल दिया, तब महादेव इस गुफा में शरण लिए। करोड़ों देवताओं ने यहाँ उनकी स्तुति की, तभी से इसका नाम कोटेश्वर पड़ा।

ब्रह्मा जी ने यहाँ कठोर तपस्या की, जिससे करोड़ों ब्रह्मराक्षसों का उद्धार हुआ और यह धाम मोक्षदायी सिद्ध हुआ।

यहाँ स्थित प्राकृतिक शिवलिंग विशेष है, क्योंकि इसमें भगवान शिव अपने परिवार—माता पार्वती, श्री गणेश और कार्तिकेय

यह धाम माँ भागीरथी के पावन उत्तरवाहिनी तट पर स्थित है। गंगा का उत्तरमुखी प्रवाह पुराणों में अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। यहाँ बने शिवकुंड में स्नान कर शिवलिंग का दर्शन करने से भक्त को अकथनीय शांति, पुण्य और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त होता है।

यह मंदिर भागीरथी नदी के तट पर एक विशाल चट्टान में बनी प्राकृतिक गुफा के भीतर स्थित है।

गुफा के अंदर प्रवेश करने पर अद्भुत ध्वन्यात्मक अनुनाद (echo) सुनाई देता है, जिसे साधक ॐकार की ध्वनि मानते हैं।

गुफा के भीतर कई छोटे-छोटे शिवलिंग और शिलाखंड हैं, जिन्हें ऋषियों की तपस्थली माना जाता है।

चारों ओर घने जंगल और ऊँचे पर्वत इस धाम को प्राकृतिक सौंदर्य और दिव्यता से भर देते हैं।

कुण्डेश्वरी देवी मंदिर – कोटेश्वर महादेव से लगभग 3 किमी दूरी पर स्थित यह शक्तिपीठ माँ दुर्गा को समर्पित है।

नरेंद्रनगर का नरेश महल – ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल, जहाँ से हिमालय और गंगा का भव्य दृश्य दिखता है।

देवप्रयाग – गंगा की उत्पत्ति स्थली (भागीरथी और अलकनंदा का संगम) कोटेश्वर से लगभग 30 किमी दूर स्थित है।

कुंजापुरी देवी मंदिर – गढ़वाल का प्रसिद्ध सिद्धपीठ, जहाँ से हिमालय और गंगा दोनों का दिव्य दर्शन संभव है।

कहा जाता है कि यहाँ सप्तऋषियों ने भी तप किया था।

हर साल सावन मास और महाशिवरात्रि पर यहाँ विशाल मेले का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दराज़ से हजारों श्रद्धालु पहुँचते हैं।

गढ़वाली लोकगीतों और जागर गाथाओं में कोटेश्वर धाम को मोक्षदायी तीर्थ के रूप में गाया गया है।

गुफा में प्रवेश करते ही श्रद्धालु के मन में गहरी शांति और ऊर्जा का संचार होता है। चारों ओर से पर्वतों की प्रतिध्वनि और गंगा की कलकल ध्वनि मानो स्वयं महादेव का मंत्रजाप प्रतीत होती है।
यह धाम साधकों के लिए कैलाश समान पवित्र है।

“जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से कोटेश्वर महादेव की शरण में आता है, उसकी हर मनोकामना भगवान अवश्य पूर्ण करते हैं।”

 

 

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