उत्तराखंड में संस्कृत शिक्षा को नया आयाम देगा ‘बालगुरुकुलम्’सुरुवात

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर, देवप्रयाग में बाल विद्यालय का शुभारंभ

देवप्रयाग। उत्तराखंड की तपोभूमि देवप्रयाग में संस्कृत शिक्षा को नया आधार देते हुए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर में ‘श्रीरघुनाथकीर्ति बालगुरुकुलम्’ नामक बाल विद्यालय की स्थापना की गई है। इस विद्यालय का उद्घाटन रविवार को कर्नाटक स्थित पलिमरु उडुपि मठ के मठाधीश अनंत श्री श्री श्री विद्याधीश तीर्थ महास्वामी ने किया।

उद्घाटन अवसर पर महास्वामी ने कहा कि यह गुरुकुल उत्तराखंड जैसे संस्कृतप्रेमी प्रदेश के लिए एक वरदान सिद्ध होगा। उन्होंने कहा कि संस्कृत को मृत भाषा कहना इसकी महिमा से अनभिज्ञता दर्शाता है, जबकि यह विश्व की सबसे वैज्ञानिक और जीवन्त भाषा है। उन्होंने विद्यालय की स्थापना को “बालकांड की भांति संस्कृत शिक्षा की महान यात्रा का आरंभ” बताया और आशा जताई कि यहां से संस्कृत विद्वानों की सशक्त पौध तैयार होगी।

महास्वामी ने कहा कि देवभूमि की गोद में, गंगा-यमुनोत्री के संगम स्थल पर, संस्कृत की ऐसी व्यवस्था स्थापित करना पुण्य और गौरव का कार्य है। उन्होंने इस प्रयास के लिए कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी और निदेशक प्रो. पीवीबी सुब्रह्मण्यम को साधुवाद दिया।

महास्वामी के शिष्य श्री विद्या राजेश्वर तीर्थ ने कहा कि देवप्रयाग जैसे आध्यात्मिक स्थल में यह शिक्षा केंद्र संस्कृत भाषा के संरक्षण व प्रचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। वहीं कुलपति प्रो. वरखेड़ी ने अपने संदेश में कहा कि शास्त्र समुत्कर्ष केंद्र और बालगुरुकुलम् का उद्घाटन दो संतों के करकमलों से होना ऐतिहासिक और सौभाग्यपूर्ण क्षण है।

निदेशक प्रो. सुब्रह्मण्यम ने कहा कि देवप्रयाग जैसे दुर्गम भूगोल में इस विद्यालय का संचालन एक चुनौती है, लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति से हर बाधा को पार किया जा सकता है। उन्होंने इसे संस्कृत शिक्षा की महान नर्सरी बताया जो समय के साथ महान फल प्रदान करेगी।

इस शुभ अवसर पर वैदिक मंत्रोच्चार और पारंपरिक अनुष्ठानों के साथ विद्यालय का उद्घाटन संपन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. गणेश्वरनाथ झा ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डाॅ. ब्रह्मानंद मिश्र ने किया।इस ऐतिहासिक अवसर पर विश्वविद्यालय के अनेक प्राध्यापक, शोधार्थी और संस्कृतप्रेमी गणमान्यजन उपस्थित रहे, जिनमें डाॅ. शैलेंद्रनारायण कोटियाल, प्रो. चंद्रकला आर. कोंडी, डाॅ. अनिल कुमार, डाॅ. सच्चिदानंद स्नेही, डाॅ. श्रीओम शर्मा, डाॅ. सुधांशु वर्मा, डाॅ. सूर्यमणि भंडारी, डाॅ. मनीषा आर्या, डाॅ. अवधेश बिजल्वाण आदि प्रमुख रहे।

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